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महान गौरक्षक वीर बिग्गा जी महाराज का जन्म इतिहास व मन्दिर व  पौराणिक कथाएं

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वीर बिग्गाजी महाराज का जन्म जाट जाति के जाखड़ गौत्र मैं जन्म हुआ बिग्गाजी महाराज गायो कि रक्षा करते वीर गति को प्राप्त हो गए बिग्गा जी जाखड़ गौत्र के कुल देवता के रूप मे पूजे जाते हैं।

Contents

प्रारंभिक जीवन

राजस्थान के वर्तमान बीकानेर जिले के श्रीडूंगरगढ़ में स्थित गाँव बिग्गा व रिड़ी में जाखड़ जाटों का भोमिचारा था और लंबे समय तक जाखड़ों का इन पर अधिकार बना रहा।

बिग्गा जी का जन्म विक्रम संवत 1358 (1301) में राजस्थान के बीकानेर जिले  की तहसील श्रीडूंगरगढ़ के गांव  रिड़ी में हुआ रहा. इनका गोत्र पुरुवंशी है. इस गोत्र के बड़े बड़े जत्थे दिग्विजय के लिए विदेश में गए बताये जाते हैं. ये वापिस अपनी जन्म स्थली भारतवर्ष लौट आए. इनके पिताजी का नाम राव मेहन्दजी तथा दादा जी का नाम राव लाखोजी चुहड़ था. गाँव कपूरीसर के ग्राम प्रधान चूहड़ जी गोदारा की पुत्री सुलतानी इनकी माता जी थी।

बिग्गाजी जब थोड़े बड़े हुए तो इनको धनुष विद्या तथा अस्त्र-शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिया गया. जब वे युवा हुए तो उन्हें विशेष युद्ध लड़ने की शिक्षा दी गई. उस युग में गायों को पवित्र और पूजनीय माना जाता था. उस समय में गायों को चराना और उनकी रक्षा करना क्षत्रियों का धर्म और प्रतिष्टा मानी जाती थी।

बिग्गाजी की वंशावली

राव लाखोजी के चार रानियों से 22 पुत्र व 2 पुत्रियाँ उत्पन्न हुई। इन भाइयों में सबसे बड़ा भाई राव मेहन्दजी का विवाह गाँव कपूरीसर के ग्राम प्रधान चूहड़ जी गोदारा की पुत्री सुल्तानी के साथ हुआ कपूरीसर वर्तमान में बीकानेर जिले की लूणकरणसर तह्सील में स्थित है। बिग्गाजी का जन्म माता सुल्तानी की कोख से रोहिणी नक्षत्र धन लगन में प्रात: के समय हुआ राव मेहंदजी ने उनके जन्म के समय दान-पुन्य किया और आस-पास के गांवों में न्योता देकर बुलाया  बिग्गाजी के एक बहन थी जिसका नाम हरिया बाई था

युवा होने पर बिग्गाजी की शादी अमरसर के चौधरी खुशल सिंह सिनसिनवार की पुत्री राजकंवर के साथ हुई बिग्गाजी की दूसरी शादी मालासर (मोलाणिया) के खिदाजी मील की पुत्री मीरा के साथ हुई ये दोनों तरुनीय बड़ी सुंदर ,सुडौल एवं अत्यन्त शील थी।

वंशावली के अनुसार बिग्गाजी के राजकँवर से कोई संतान उत्पन्न होने का उल्लेख नहीं है, बिग्गाजी के घर मीरा से चार पुत्र रत्न तथा एक पुत्री का जन्म हुआ इनके पुत्रों के नाम 1. कुंवर आलजी, 2. कुंवर जालजी, 3. कुंवर बहालजी व 4. कुंवर हंसराव जी थे. पुत्री का नाम हरियल था।

कोलियोजी पड़िहार (मंडोर → केऊ)

जक्खा (जाखासर)/(राव लाखोजी)

राव मेहन्दजी (m.सुल्तानी गोदारा) + (लड़की का नाम रिड़ी)

बिग्गाजी (m.मीरा मील)

1. आलजी, 2. जालजी, 3. बहालजी 4. हंसरावजी 5. पुत्री हरियल
नोट – यहाँ m से तात्पर्य है – शादी

हिन्दू धर्म के संरक्षक और महान गौरक्षक
     

 वीर बिग्गाजी ने बैसाख सुदी तीज को 1336 ई. में गायों की डाकुओं से रक्षा करने में अपने प्राण दांव पर लगा दिये थे. विक्रम संवत 1393 में बिग्गाजी के साले का विवाह था। ऐसी लोक कथा प्रचलित है कि बिग्गाजी 1336 ई. में अपनी ससुराल में साले की शादी में गए तब साथ में बागड़वा ढाढी, जाखड़ नाई, तावणिया ब्राह्मण, कालवा मेघवाल को भी साथ ले गये. रात्रि विश्राम के बाद सुबह खाने के समय मिश्रा ब्राहमणों की कुछ औरतें आई और बिग्गाजी से सहायता की गुहार की. मिश्रा ब्राहमणियों ने अपना दुखड़ा सुनाया कि यहाँ के राठ मुसलमानों ने हमारी सारी गायों को छीन लिया है। वे उनको लेकर जंगल की और गए हैं। कृपा करके हमारी गायों को छुड़ाओ.उन्होने कहा कि कोई भी क्षत्रिय रक्षार्थ आगे नहीं आ रहा है। इस बात पर बिग्गाजी का खून खोल उठा बिग्गाजी ने कहा “धर्म रक्षक क्षत्रियों को नारी के आंसू देखने की आदत नहीं है। अपने अस्त्र-शस्त्र उठाये और साथी सावलदास पहलवान, हेमा बागडवा ढाढी, गुमानाराम तावणिया, राधो व बाधो दो बेगारी व अन्य साथियों सहित गायों के रक्षार्थ सफ़ेद घोडी पर सवार होकर मालासर से रवाना हुये। मालासर वर्तमान में बीकानेर जिले की बीकानेर तह्सील में स्थित है।

बिग्गाजी अपने लश्कर के साथ गायों को छुडाने के लिए चल पड़े. मालासर से 35 कोस दूर जेतारण (जो अब उजाड़ है) में बिग्गाजी का राठों से मुकाबला हुआ लुटेरे संख्या में कहीं अधिक थे दोनों में घोर युद्ध हुआ यह युद्ध राठों की जोहडी नामक स्थान पर हुआ, काफी संख्या में राठों के सर काट दिए गए वहां पर इतना रक्त बहा कि धरती खून से लाल हो गई। युद्ध में राठों को पराजित कर सारी गायें वपस लेली, लेकिन एक बछडे के पीछे रह जने के कारण ज्योंही बिग्गाजी वापस मुड़े एक राठ ने धोके से आकर पीछे से बिग्गाजी का सर धड़ से अलग कर दिया। राठों के साथ युद्ध की घटना वि.सं. 1393 (1336 ई.) बैसाख सुदी तीज को हुई थी।

ऐसी लोक कथा प्रचलित है कि सर के धड़ से अलग होने के बाद भी धड़ अपना काम करती रहीदोनों बाजुओं से उसी प्रकार हथियार चलते रहे जैसे जीवित के चलते हैं। सब राठों को मार कर बिग्गाजी की शीश विहीन देह ने असीम वेग से व ताकत के साथ शस्त्र साफ़ किए सर विहीन देह के आदेश से गायें और घोड़ी वापिस अपने मूल स्थान की और चल पड़े शहीद बिग्गा जी ने गायों को अपने ससुराल पहुँचा दिया तथा फ़िर घोडी बिग्गाजी का शीश लेकर जाखड राज्य की और चल पड़ी।

घोडी जब अपने मुंह में बिग्गा जी का शीश दबाए जाखड राज्य की राजधानी रीडी़ पहुँची तो उस घोडी को बिग्गा जी की माता सुल्तानी ने देख लिया तथा घोड़ी को अभिशाप दिया कि जो घोड़ी अपने मालिक सवार का शीश कटवा देती है तो उसका मुंह नहीं देखना चाहिए। कुदरत का खेल कि घोडी ने जब यह बात सुनी तो वह वापिस दौड़ने लगी पहरेदारों ने दरवाजा बंद कर दिया था सो घोड़ी ने छलांग लगाई तथा किले की दीवार को फांद लिया किले के बाहर बनी खई में उस घोड़ी के मुंह से शहीद बिग्गाजी का शीश छुट गया. जहाँ आज शीश देवली (मन्दिर) बना हुआ है।

बिग्गाजी के जुझार होने क समाचार उनकी बहिन हरिया ने सुना तो एक बछड़े सहित सती हो गयी उस स्थान पर एक चबूतरा आज भी मौजूद है, जो गांव रिड़ी में है। यह स्थान रीड़ी गाँव के पश्चिम की और है, जहाँ बिग्गाजी के पुत्रों ओलजी-पालजी ने एक चबूतरा बनवाया जो आज भी भग्नावस्था में ‘थड़ी’ के रूप में मौजूद है और जिसको गाँव के बुजुर्ग लोग ‘हरिया पर हर देवरा’ के रूप में पुकारते हैं।

जब घोड़ी शहीद बिग्गाजी का शीश विहीन धड़ ला रही थी तो उस समय जाखड़ की राजधानी रीडी से पांच कोस दूरी पर थी यह स्थान रीडी से उत्तर दिशा में गोमटिया की रोही में है। सारी गायें बिदक गई ग्वालों ने गायों को रोकने का प्रयास किया तो उनमें से एक गाय घोड़ी से टकरा गई तथा खून का छींटा उछला उसी स्थान पर एक गाँव बसाया गया जिसका नाम गोमटिया से बदल कर बिग्गाजी के नाम पर बिग्गा रखा गया जहाँ आज धड़ देवली (मन्दिर) बना हुआ है। यह गाँव आज भी आबाद है तथा इसमें अधिक संख्या जाखड़ गोत्र के जाटों की है। यह गाँव राष्ट्रीय राजमार्ग 11 पर श्रीडूंगरगढ़ व रतनगढ के बीच आबाद है। यहाँ पर बीकानेर दिल्ली की रेलवे लाइन का स्टेशन भी है। और वर्तमान में वीर बिग्गाजी का नवनिर्मित भव्य मंदिर, जो धौलपुर के लाल पत्थरों से अलंकृत है, को देखने श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।

प्राचीन मंदिर बिग्गा
भव्य नवनिर्मित मन्दिर(धड़ देवली धाम बिग्गा)

गायों की रक्षा करते हुए बिग्गाजी वीरगति को प्राप्त होने के कारण लोगों की आस्था के पात्र बन गए लोगों ने गाँव रीड़ी में जहाँ बिग्गाजी का जन्म स्थान था तथा जहाँ बिग्गाजी का शीश गिरा था, वहां वि.सं. 1407 (1350 ई.) असोज सुदी 13 को एक कच्चा चबूतरा बना दिया था और बिग्गाजी की पूजा अर्चना आरंभ कर दी. इसी तरह गाँव बिग्गा में भी, जहाँ बिग्गाजी की धड़ गिरी थी और जमीन से देवली निकली थी, वहां ‘धड देवली’ स्थापित है। जो आज एक सुंदर मन्दिर भी बना हुआ है।

वीर बिग्गा जी मन्दिर शीश देवली धाम रीड़ी
शीश देवली धाम रीड़ी में  वीर बिग्गाजी महाराज की 21 क्विंटल वजनी मूर्ति  अष्ठ धातु से निर्मित करीब 51 लाख रुपये की  लागत से बनी हुई है।  जिसका वर्तमान में उद्घाटन हुआ है।

लोक सहित्य में बिग्गाजी

लोक सहित्य में बिग्गाजी के सम्बन्ध में अनेक दोहे और छंद जनमानस मे प्रचलित हैं जिनसे अनेक जानकारी प्राप्त होती हैं। सौ ए कोसे रिच्छा करो हिंदवाणी रा सूर ।इगियारी संवतां तणो बरस इक्कीसो साल ।काती मास तिथी तेरसो वार शनिसर वार ।राजा तो रतन सिंघ सिरदार सिंघ राजकंवार ।धरसी बैठा पाठवी भली बताई वार ।बडो भाई सदा सुख पिता नांव श्रीराम ।सिंवर देवी सुळतानवी औ चंद कयो लछीराम ।

बिग्गाजी के छंद

सिंवरू देवी सारदा लुळहर लागूं पाय ।बिगमल हुवो बीकाणगढ सोभा देवूं बताय ।कियो रड़ाको राड़ सूं लेसूं निजपत नांव ।सारद सीस नवाय कर करसूं कथणी काम ।बीदो बीको राजवी गढ बीकाणो गांव ।जूना खेड़ा प्रगट किया इडक बिगो है धाम ।रूघपत कुळ में ऊपन्यो भगीरथ वंश मांय ।मामा गोदारा भीम-सा, नानै चूहड़ का नांव ।रीड़ज गढ रो पाटवी परण्यो माला रै गांव ।धिन कर चाल्यौ सासरै नाईज लिया बुलाय ।कंगर कढाई कोरणी कपड़ा लिया सिलाय ।कचव कंठी सोवणी गळ झगबग मोती झाग ।मीमां जरी जड़ाव की माथै कसूमल पाग ।धिन कर चाल्यो सासरै मात-पिता अरु मेंहद ।कमेत घोड़ी बो धणी बण्यो पून्यूं को चंद ।उठै राठ की हुई चढाई, दिल्ली का तखत हजारो ।क्या मक्का बलखबुखारोचढ्यो राठकर हौकारो ।सिंवर मीर पीर पट्टाण ध्यान मैंमद का धर रे ।किसो मुलक लौ मार किसो अक छोड़ो थिर रे ।कहै राठ इक बात कयो थे हमरो करो ।मार जाट का लोग डेरा जसरसर धरो ।डावी छोड़दो जखड़ायण जींवणी नागौरी गउवों घेरो ।चढ्यो राठ को लोग सुगन ने बोल झडा़ऊ ।पिर्या सिंध सादूल सुगन बै हुया पलाऊ ।

श्री बिग्गाजी महाराज की आरती

जय बिगमल देवा-देवा-जाखड़कुल के सूरज करूं मैं नित सेवा ।जाखड़ वंश उजागर, संतन हित कारी (प्रभु संतन)दुष्ट विदारण दु:ख जन तारण, विप्रन सुखकारी ॥ 1 ॥सत धर्म उजागर सब गुण सागर, मंदन पिता दानी ।सती धर्म निभावण सब गुण पावन, माता सुल्तानी ॥ 2 ॥सुन्दर पग शीश पग सोहे, भाल तिलक रूड़ो देवा-देवा ।भाल विशाल तेज अति भारी, मुख पाना बिड़ो ॥ 3 ॥कानन कुन्डल झिल मिल ज्योति, नेण नेह भर्यो ।गोधन कारन दुष्ट विदारन, जद रण कोप करयो ॥ 4 ॥अंग अंगरखी उज्जवल धोती, मोतीन माल गले ।कटि तलवार हाथ ले सेलो, अरि दल दलन चले ॥ 5 ॥रतन जडित काठी, सजी घोड़ी, आभाबीज जिसी ।हो असवार जगत के कारनै, निस दिन कमर कसी ॥ 6 ॥जब-जब भीड़ पड़ी दुनिया में , तब-तब सहाय करी ।अनन्त बार साचो दे परचो, बहु विध पीड़ हरी ॥ 7 ॥सम्वत दोय सहस के माही, तीस चार गिणियो ।मास आसोज तेरस उजली, मन्दिर रीड़ी बणियो ॥ 8 ॥दूजी धाम बिग्गा में सोहे, धड़ देवल साची ।मास आसोज सुदी तेरस को, मेला रंग राची ॥ 9 ॥या आरती बिगमल देवा की, जो जन नित गावे ।सुख सम्पति मोहन सब पावे, संकट हट जावै ॥ 10 ॥

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