श्री डूंगरगढ़ टुडे 12 अगस्त 2025
कजली तीज भाद्रपद में मनाई जाती है,
घर में प्रसन्नता सी छा जाती है।
औरतों के मन में उत्साह का भाव है,
व्रत करने का इनको बड़ा चाव है।
विभिन्न प्रकार के सातु बनाए जाते हैं,
मेवों से थाल सजाए जाते है।
खुशी से झूमने को मन तैयार है,
कजली तीज भी व्रत के रूप में त्योहार है।
ससुराल से सिंझारा आता है,
दिल, तहे दिल से उनका स्वागत करता है।
पीहर से सातु, साड़ी और ढेर सा सामान आता है,
प्रेम की भेंट प्राप्त कर मन हर्षित हो जाता है।
नये कपड़े, गहने पहनने को मन करता है,
आज व्रत करना है ये भाव मन में रहता है।
शाम के समय नीमड़ी के पास बैठ कहानी सुनी जाती है, नैवेद्य, सातु आदि की भेंट चढ़ाई जाती है।
सब सखियाँ खुशी के साथ गीत गाती है,
बड़ी प्रसन्नता से चाँद को देख इतरांती है।
अनेक प्रकार के पकवान बनते हैं,
सभी सज सँवर घर से निकलते है।
लाल साड़ी में औरतें देवी स्वरूपा लगती है,
अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती है।
अपना पीहर सदा फले-फुले ये भी दुआ करती है,
माता तीज से हर पल बस यही प्रार्थना करती है।
श्रृंगार के साथ उत्साह भी शामिल है,
हम जीवन भर ये व्रत करें हम इस काबिल है।
