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माँ दुर्गा का स्वरूप..✍️✍️

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श्रीडूंगरगढ़ टुडे 24 सितंबर 2025

दुर्गा, आदि शक्ति और जगत जननी का स्वरूप ब्रह्मांड की ऊर्जा और विभिन्न गुणों का प्रतीक है, जो वर्तमान समय में भी शक्ति, समृद्धि, ज्ञान और बुराई पर अच्छाई की विजय का मार्गदर्शन करता है, नवरात्रि के नौ रूपों के माध्यम से, वे आध्यात्मिक यात्रा, तपस्या और अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति का संदेश देती है।

नव दुर्गा का स्वरूप –

अलग- अलग रूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि नवदुर्गा मां दुर्गा के नौ के दौरान की जाती है। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री, ये नौ रूप शक्ति, साहस और देवी के विभिन्न गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं, और इनकी पूजा से भक्तों को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

शैलपुत्री- पर्वतराज हिमालय की पुत्री, जिन्हें नवरात्र के पहले दिन पूजा जाता है।

ब्रह्मचारिणी – ज्ञान और तपस्या की देवी ।

चन्द्रघण्टा – देवी का वह रूप जो शान्त और सौम्य है, जो भक्तों को भय से मुक्ति दिलाती है।

कूष्मांडा – ब्रह्मांड की रचनाकार, जो प्रकाश और ऊर्जा का प्रतीक है।

स्कन्दमाता – स्कन्द (कार्तिकेय) की माता, जो ज्ञान और बुद्धि की देवी है।

कात्यायनी देवी के रूप में दानवों का वध करने वाली देवी कालरात्रि – भय और विनाश की देवी, जो बुराई का नाश करती है।

कालरात्रि-भय और विनाश की देवी जो बुराई का नाश करती है।

महागौरी – श्वेत वर्णवाली देवी, जो पाप और संकरों को हरती है।

सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करने वाली देवी ।

कुछ महत्त्वपूर्ण पंक्तियाँ-

माँ के रूप में, वात्सल्य से परिपूर्ण है माँ दुर्गा ।अष्टभुजा की महिमा निराली, रंगों से हमारी दुनिया रंगीन कर डाली।

एक हाथ में चक्र पापनाशक है।

दूसरे हाथ में खङ्‌ग शत्रुओं की विनाशक है।

तीसरे हाथ में त्रिशूल, देवी पापियों का नाश करने में करती नहीं भूल।

चौथे हाथ में शंख है,जो शुद्धता, पवित्रता,क्रान्ति का दूत है।

पाँचवे हाथ में गंदा है, उससे देती पापियों को सजा है।

छठे में धनुष और बाण है, देवी समस्त गुणों की खान है, इस बात का प्रमाण है।

सातवें हाथ में कमल है, कमल कोमलता की निशानी है।

आठवा हाथ आशीर्वाद स्वरूप है, माँ करती बेड़ा पार है, माँ की भक्ति से हम सब निहाल है

आजकल की लड़कियों, महिलाओं को भी मां दुर्गा से त्याग, तपस्या, सहनशीलता आदि गुणों को सीखना चाहिए। माँ के हाथ में मोबाइल फोन नहीं है फिर भी काम करने में त्वरित है, मोबाइल को पच्चीस वर्ष तक नहीं छूना चाहिए ये बात लड़कियों पर नहीं लड़को पर भी लागू होनी चाहिए। सभी बच्चों को अपने मन के भाव शुद्ध रखने चाहिए।

“स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा का विकास होता है।”

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