श्रीडूंगरगढ़ टुडे 2 अक्टूबर 2025
आज हम सभी भारतवासी एक-दूसरे को विजयादशमी की शुभ कामनाएँ दे रहे हैं। दशहरा पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया। ये पर्व प्रतीक है- असत्य पर सत्य की जीत का, बुराई पर अच्छाई की जीत का । आज ही के दिन प्रभु श्रीराम ने दुष्ट रावण का वध किया था। रावण को दशानन कहते है। क्योंकि रावण के दश मुख (आनन) थे मुख प्रतीक थे। 1 (काम) 2 (क्रोध) 3 लोभ मोह बुराई अहंकार स्वार्थ ईर्ष्या घृणा निंदा इन सभी बुराइयों के कारण ही विद्वान रावण मारा गया। हम हर वर्ष रावण को जलाकर समाज में इस बात का संदेश देते हैं कि असत्य की कभी जीत नहीं होती है। अन्त में जीत सूत्य की होती है। सच्चाई की राह पर चलने वाले व्यक्ति को हमेशा सुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कष्टों को झेलते हुए वह अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। आज हम सभी बाह्य रावण को तो जला देते हैं लेकिन हमारे अन्तर्मन में बसे रावण का वध नहीं कर पाते है। मेरा मानना यह है कि हमारे मन में जो बुराई के रूप में उपस्थित रावण है पहले हमें उस रावण का वध करना चाहिए तभी सही मायने में हम कह सकते हैं कि आज सम्पूर्ण भारतवासियों ने ये विजय पर्व (दशहरा) मनाया है।
कुछ पंक्तियाँ –
काम, क्रोध, लोभ, मोह में,
हम अकसर फंस जाते हैं।
इनके कारण हम पथ से भ्रष्ट हो जाते हैं।
बुराई करते-करते भलाई करना भूल जाते हैं,
फिर आरोप किसी और पर लगाते हैं।
अंहकारके मद में चूर हो जाते हैं,
ये जीवन नश्वर है इस बात को भूल जाते हैं।
स्वार्थ के वशीभूत हो दूसरे का बुरा कर देते हैं,
हम अपने विनाश का कारण स्वयं ही बन जाते हैं।
ईर्ष्या शरीर को जलाती है,
तभी तो हर रूप में हमारी दुश्मन कहलाती है।
घृणा एक तरीके से नर्क का द्वार है,
इसको जो अपनाता हो जाता बेकार है।
निंदा करने से दूसरे के पाप हम पर चढ़ जाते हैं,
पर पता नहीं ये लोग निंदा को क्यों नहीं छोड़ पाते हैं।
संदेश– इन बुराइयों को यदि हम नहीं मिटाएगें तो बुराई रूपी रावण हमारे रूप में हमेशा जिन्दा रहेगा इसलिए हमें इन बुराइयों को मिटाकर अपने अंतर्मन में प्रभू श्री राम को याद करना होगा।